यूँ ही कुछ मुस्काकर तुमने
परिचय की ये गाँठ लगा दी।
था पथ पर मैं भूला-भूला
फूल उपेक्षित कोई फूला
जाने कौन लहर थी, उस दिन
तुमने अपनी याद जगा दी
यूँ ही कुछ मुस्काकर तुमने
परिचय की ये गाँठ लगा दी।
कभी-कभी यों हो जाता है
गीत कहीं कोई गाता है
गूँज किसी उर में उठती है
तुमने वही धार उमगा दी
यूँ ही कुछ मुस्काकर तुमने
परिचय की ये गाँठ लगा दी।
जड़ता है जीवन की पीड़ा
निस्तरंग पाषाणी क्रीड़ा
तुमने अनजाने वह पीड़ा
छवि के सर से दूर भगा दी
यूँ ही कुछ मुस्काकर तुमने
परिचय की ये गाँठ लगा दी।।
-त्रिलोचन
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