Wednesday, October 04, 2023

यह बात किसी से मत कहना

मैं तेरे पिंजरे का तोता
तू मेरे पिंजरे की मैना
यह बात किसी से मत कहना।

मैं तेरी आँखों में बंदी
तू मेरी आँखों में प्रतिक्षण
मैं चलता तेरी साँस-साँस
तू मेरे मानस की धड़कन
मैं तेरे तन का रत्नहार
तू मेरे जीवन का गहना
यह बात किसी से ...

हम युगल पखेरू हँस लेंगे 
कुछ रो लेंगे कुछ गा लेंगे
हम बिना बात रूठेंगे भी
फिर हँसकर तभी मना लेंगे
अंतर में उगते भावों के
जज़्बात किसी से मत कहना
यह बात किसी से ...

क्या कहा, कि मैं तो कह दूँगी
कह देगी, तो पछताएगी
पगली इस सारी दुनिया में
बिन बात सताई जाएगी
पीकर प्रिय अपने नयनों की बरसात
विहँसती ही रहना
यह बात किसी से ...

हम युगों-युगों के दो साथी
अब अलग-अलग होने आए
कहना होगा तुम हो पत्थर
पर मेरे लोचन भर आए
पगली, इस जग के अतल सिंधु में
अलग-अलग हमको बहना
यह बात किसी से ...

-देवराज दिनेश

Monday, October 02, 2023

तुम्हारे ही नयन में तो बसा हूँ


जगदीश पंकज श्रेष्ठ गीत/ नवगीतकार हैं... आज उनके इस नवगीत को पढ़ें ...  प्रतिक्रिया भी लिखें... 
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सितारों में कहाँ 
तुम खोजते हो
तुम्हारे ही नयन में तो बसा हूँ 

किसी की चाहतों के 
रंग लेकर 
क्षितिज पर मल दिये हों
जब गगन ने
अनोखे दृश्य लेकर 
धूप से भी
सजाये हैं कहीं पर
शान्त मन ने 
तुम्हारी कोर पर 
चिपका हुआ हूँ
तुम्हारी दृष्टि में ही तो कसा हूँ !
तुम्हारे ही नयन में... 

तुम्हारे रोम-कूपों से 
उछलकर
अनोखी गन्ध कैसी
बह रही है 
मिला मकरंद भी मादक 
जिसे हो
उसी की साँस सब कुछ
कह रही है
सुखद आलिंगनों की
कल्पना में  
मचलकर मैं स्वयं ही तो फँसा हूँ !
तुम्हारे ही नयन में... 

-जगदीश पंकज

Sunday, October 01, 2023

सूनी साँझ

आज सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॅा. शिवमंगल सिंह सुमन का एक प्रसिद्ध  गीत उनके प्रस्तुत है...  
इसे पढ़ें और समझें कि एक बड़े कद के साहित्यकार के गीत में ऐसा क्या होता है जिससे वह कुछ खास हो जाता है ...  अपनी टिप्पणी भी लिखें... 
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बहुत दिनों में आज मिली है
साँझ अकेली, 
साथ नहीं हो तुम।
पेड़ खड़े फैलाए बाँहें
लौट रहे घर को चरवाहे
यह गोधूली ! 
साथ नहीं हो तुम।

कुलबुल-कुलबुल नीड़-नीड़ में
चहचह-चहचह मीड़-मीड़ में
धुन अलबेली, 
साथ नहीं हो तुम।

जागी-जागी, सोई-सोई
पास पड़ी है खोई-खोई
निशा लजीली, 
साथ नहीं हो तुम।

ऊँचे स्वर से गाते निर्झर
उमड़ी धारा, जैसी मुझ पर
बीती, झेली, 
साथ नहीं हो तुम।

यह कैसी होनी-अनहोनी
पुतली-पुतली आँखमिचैनी
खुलकर खेली, 
साथ नहीं हो तुम।
   
 -शिवमंगल सिंह सुमन

Saturday, September 30, 2023

जाल फेंक रे मछेरे

बुद्धिनाथ मिश्र लोकप्रिय गीतकार हैं, उनके गीतों में एक विशेष तरह का सम्मोहन रहता है... आज उनके इस नवगीत को पढ़ें और समझें कि बिम्ब प्रतीकों में कैसे कुछ गहरी बात कही जा सकती है...  प्रतिक्रिया भी लिखें... 
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एक बार और जाल 
फेंक रे मछेरे !
जाने किस मछली में 
बन्धन की चाह हो !

सपनों की ओस 
गूँथती कुश की नोंक है
हर दर्पण में उभरा 
एक दिवालोक है
रेत के घरौंदों में 
सीप के बसेरे
इस अँधेर में कैसे 
नेह का निबाह हो !
जाने किस मछली में... 

उनका मन आज 
हो गया पुरइन पात है
भिगो नहीं पाती 
यह पूरी बरसात है
चन्दा के इर्द-गिर्द 
मेघों के घेरे
ऐसे में क्यों न कोई 
मौसमी गुनाह हो !
जाने किस मछली में... 

गूँजती गुफ़ाओं में 
पिछली सौगन्ध है
हर चारे में कोई 
चुम्बकीय गन्ध है
कैसे दे हंस 
झील के अनंत फेरे
पग-पग पर लहरें जब 
बाँध रही छाँह हों !
जाने किस मछली में... 

कुंकुम-सी निखरी कुछ 
भोरहरी लाज है
बंसी की डोर बहुत 
काँप रही आज है
यों ही ना तोड़ अभी 
बीन रे सँपेरे
जाने किस नागिन में 
प्रीत का उछाह हो !
जाने किस मछली में... 

-बुद्धिनाथ मिश्र

Friday, September 29, 2023

ये असंगति जिन्दगी के द्वार






  भारत भूषण जी का  एक बहुत प्रसिद्ध और लोकप्रिय गीत 


ये असंगति जिन्दगी के द्वार 
सौ-सौ बार रोई
बाँह में है और कोई 
चाह में है और कोई।।

साँप के आलिंगनो में
मौन चन्दन तन पड़े हैं
सेज के सपने भरे कुछ
फूल मुरदों पर चढ़े हैं
ये विषमता भावना ने सिसकियाँ भरते समोई
देह में है और कोई चाह में है और कोई।।

स्वप्न के शव पर खड़े हो
मांग भरती हैं प्रथाएँ
कंगनों से तोड़ हीरा
खा रही कितनी व्यथाएँ
ये कथाएँ उग रही हैं नागफन जैसी ऊबोई
सृष्टि में है और कोई चाह में है और कोई।।

जो समर्पण ही नहीं हैं
वे समर्पण भी हुए हैं
देह सब जूठी पड़ी है
प्राण फिर भी अनछुए हैं
ये विकलता हर अधर ने कंठ के नीचे संजोई
हास में है और कोई चाह में है और कोई।।
                
-भारत भूषण

Thursday, September 28, 2023

एक पेड़ चाँदनी

देवेन्द्र कुमार बंगाली  का  एक बहुत प्रसिद्ध नवगीत 




एक पेड़ चाँदनी
लगाया है आँगने
फूले तो आ जाना
एक फूल माँगने

ढिबरी की लौ
जैसी लीक चली आ रही
बादल का रोना है
बिजली शरमा रही
मेरा घर छाया है 
तेरे सुहाग ने 
फूले तो आ जाना...

तन कातिक 
मन अगहन
बार-बार हो रहा
मुझमें तेरा कुआर
जैसे कुछ बो रहा
रहने दो यह हिसाब 
कर लेना बाद में
फूले तो आ जाना...

नदी, झील सागर से
रिश्ते मत जोड़ना
लहरों को आता है
यहाँ-वहाँ छोड़ना
मुझको पहुँचाया है 
तुम तक अनुराग ने
फूले तो आ जाना...

एक पेड़ चाँदनी
लगाया है आँगने
फूले तो आ जाना
एक फूल माँगने ।

-देवेन्द्र कुमार बंगाली 

Wednesday, September 27, 2023

अनकही आग में ही दहे जा रहे !

कृष्ण भारतीय वरिष्ठ गीतकार हैं, उनके गीतों में एक विशेष तरह की सादगी है... उनके इस गीत को पढ़ें और प्रतिक्रिया भी लिखें... 
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अनकही आग में ही दहे जा रहे ! 
तुम मुझे, मैं तुम्हें 
मुग्ध हूँ देखकर 
हम बहुत कुछ अबोले कहे जा रहे 

प्यार  की है न भाषा, न  रंगत  कोई 
सब मगर मुस्कराते सबेरे हुए 
भाव, सपने रचे, आँख की कोर क्या-
इद्रधनुषी  छटा के चितेरे  हुए 
अनकहे मौन में 
हम सुलगते रहे-
अनकही आग में ही दहे जा रहे 

गीत की आड़ में जो लिखीं चिट्ठियाँ
प्रेम का तुम निमंत्रण वो पढ़ ना सके 
ये हृदय  की अँगूठी  सिसकती रही 
हम नगीने-सी  सूरत ये‌ जड़ ना सके 
स्वप्न के कैनवासी 
 बिछे पृष्ठ पर 
हम ख्यालों की मूरत गढ़े जा रहे
अनकही आग में ... 

लाज की ओढ़नी में कोई अप्सरा 
शर्म की बदलियों में सिमटती रही 
चाँदनी के लिए हम खड़े रह गये 
इक अमावस में आभा वो घटती रही 
बाँह में हम तुम्हें, 
सोच में भींचते 
गीत अपनी ही धुन में पढ़े जा रहे 
अनकही आग में...

-कृष्ण भारतीय

Tuesday, September 26, 2023

पत्र लिखे, पर भेज न पाया

पत्र लिखे, पर
भेज न पाया
मीत तुम्हारे पास

अधरों पर
जो बात न आती
लिख दी है इनमें
बिना तुम्हारे 
लगता जैसे
साँस नहीं तन में
रोम-रोम में
बिंध जाता है
असहनीय संत्रास
पत्र लिखे पर... 

तुम होते तो पुरवाई
बेतरह बहकती है
पावस के घन देख
नदी
जिस तरह थिरकती है
सत्य कहूँ
जीवन के वे क्षण
हो जाते हैं खास
पत्र लिखे पर... 

तुम्हें देख
मोगरे महकने लगते हैं
मन में
विद्युत के
प्रवाह-सा अनुभव
होता है तन में
बड़े भोर
भर जाता जैसे
कण-कण में उल्लास
पत्र लिखे पर... 

चाहा बहुत
न मन की परतें
मृदुल खोल पाये
मेरे सारे गीत
रह गये 
जैसे अनगाये
संकोचों के आगे
फिर-फिर
बौने पड़े प्रयास
पत्र लिखे पर... 

-मृदुल शर्मा

Monday, September 25, 2023

स्वप्न की झील में तैरता

डॅा. धनंजय सिंह लोकप्रिय गीतकार हैं, उनके गीतों में एक विशेष तरह का सम्मोहन रहता है... उनके इस गीत को पढ़ें और प्रतिक्रिया भी लिखें... 
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स्वप्न की झील में तैरता
मन का यह सुकोमल कमल

चंद्रिका-स्नात मधु रात में
हो हमारा-तुम्हारा मिलन
दूर जैसे क्षितिज के परे
झुक रहा हो धरा पर गगन
घास के मखमली वक्ष पर
मोतियों की लड़ी हो तरल
स्वप्न की झील में तैरता...

प्यार का फूल तो खिल गया
तुम इसे रूप, रस, गंध दो
शब्द तो मिल गये गीत को
तुम इसे ताल, लय, छंद दो
मंद-मादक स्वरों में सजी
बाँसुरी की धुनें हों सरल
स्वप्न की झील में तैरता...

मौन इतना मुखर हो उठे
जो हृदय-पुस्तिका खोल दे
और जब एकरसता बढ़े
भावना ही स्वयं बोल दे
इस तरह मन बहलता रहे
सर्जनाएँ सदा हों सफल
स्वप्न की झील में तैरता...

पास भी दूर भी हम रहें
ज़िंदगी किंतु हँसती रहे
मान-मनुहार की प्यार की
याद प्राणों को कसती रहे
इस तरह चिर पिपासा मिटे
और छलकता रहे स्नेह-जल
स्वप्न की झील में तैरता...

-धनञ्जय सिंह

Sunday, September 24, 2023

मुझको इतना प्यार नहीं दो

चन्द्रसेन विराट हिंदी के लोकप्रिय साहित्यकार हैं, अनेक विधाओं में साहित्य सृजन करने वाले विराट जी गीत विधा के सिद्धहस्त रचनाकार रहे हैं, उनके इस प्रेमगीत को पढ़ें और प्रतिक्रिया लिखें... 
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जो न समेटा जाये मुझसे, 
मुझको इतना प्यार नहीं दो
क्षर प्राणों को ढाई अक्षर का 
इतना गुरु भार नहीं दो

मेरा जीवन मुक्त-काव्य है 
तुम तो छन्दमयी रचना हो
मैं काजल की राहों वाला 
तुम बिलकुल उज्ज्वल-वसना हो
दृगद्युति से अंधे हो जायें 
तुम इतना उजियार नहीं दो
जीवन भर न चुके ऋण जिसका 
तुम इतना आभार नहीं दो
मुझको इतना...

अभी न रेशम गाँठ बँधी है 
चाहो तो यह सूत्र तोड़ लो
मेरा क्या होगा मत सोचो 
तुम तो अपना पाँव मोड़ लो
मन के शीशमहल में मुझको 
आने का अधिकार नहीं दो
दर्पण, पाहन का क्या परिचय, 
परिचय का विस्तार नहीं दो
मुझको इतना...

मैं अनाथ दृग का आँसू हूँ 
मेरा मूल्य नहीं आँको तुम
वीराने में खिला फूल हूँ, 
मुझे न जूड़े में टाँको तुम
मेरे आवारा मन को तुम 
ममता का व्यवहार नहीं दो
बुझ जाने दो मुझ दीपक को, 
किन्तु स्नेह की धार नहीं दो
मुझको इतना...
-चन्द्रसेन विराट