Saturday, September 23, 2023

गीत अपना कहीं गुनगुनाते हुए

डॅा. कुँअर बेचैन जी हिंदी के लोकप्रिय और वरिष्ठ गीतकार रहे हैं, इस संकलन के लिए यह गीत डॅा. कुँअर बेचैन जी ने हाथ से लिखकर भेजा था.... उनका स्मरण उनके इस प्रेमगीत से करें और प्रतिक्रिया भी लिखें... 
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ग़म तुम्हारा लिए घूमते हम फिरे
मंच से मंच तक गीत गाते हुए
चाह थी बस यही हम तुम्हें देख लें
गीत अपना कहीं गुनगुनाते हुए

हम जहाँ भी रहे हम अकेले न थे
साथ में याद कोई तुम्हारी रही
साँस निकली, तुम्हें बस तुम्हें ढूँढ़ने
लौटने पर कहाँ वह हमारी रही
बादलों की तरह हम नयन में घिरे
और रो भी पड़े मुस्कराते हुए
चाह थी बस यही हम तुम्हें देख लें
गीत अपना कहीं...

एक युग हो गया ढूँढ़ते-ढूँढ़ते
सामने तो रहे, पर मिले ही नहीं
हमने समझा कि तुम डाल के फूल हो
किन्तु पाषाण थे तुम, हिले ही नहीं
हम कई बार खुद भी नयन से गिरे
आँसुओं की तरह झिलमिलाते हुए
चाह थी बस यही हम तुम्हें देख लें
गीत अपना कहीं...

तुम हमें सिर्फ़ अक्षर समझते रहे
जब कि हम आँसुओं से भरे नैन थे
कागजों पर रहे चिट्ठियों की तरह
होठ पर जब रहे तो मधुर बैन थे
तुम गुज़र भी गए आँधियों की तरह
रह गए पंख हम फड़फड़ाते हुए
चाह थी बस यही हम तुम्हें देख लें
गीत अपना कहीं गुनगुनाते हुए।               
                       
-डॅा० कुँअर बेचैन

12 comments:

neerja shah said...

आ. व्योम जी
नमस्कार 🙏धन्यवाद, इतने सुन्दर गीतों को साझा करने के लिए। क्या कभी मैं आपको गीत भेज सकती हूँ? बहुत सी स्मृतियाँ भी पीछे खींचकर ले जाती हैं।
प्रणव भारती

Anonymous said...

आदरणीय कुँवर बेचैन जी का दर्द में भीगा हुआ बहुत सुंदर प्रेम गीत , भावुक कर गया । रेणु चन्द्रा

डॅा. व्योम said...

अवश्य भेजें

Anonymous said...

भावपूर्ण गीत। पढ़ते ही ज़ुबान पर बैठ गई पंक्तियाँ और हम गुनगुनाने भी लगे।

nitin said...

बेहतरीन प्रेम गीत, जो दिल में एक कसक पैदा कर देता है...

Pragati said...

बहुत बढ़िया गीत।

डॉ० भावना कुँअर said...

पापाजी की स्मृतियों को नमन🙏🏻😢

Anonymous said...

रो भी पड़े मुस्कुराते हुए...जीवंत अभिव्यक्ति!
भावों से भरा गीत...!

प्रीति गोविंदराज said...

भावुक कर दिया इस सुंदर प्रेमगीत ने। कुंवर बैचेन जी का अद्भुत प्रेमगीत साझा करने का आभार।

प्रतिमा said...

किन्तु पाषाण थे तुम ,हिले ही नहीं'

बहुत सुंदर ,वाह
प्रतिमा प्रधान

Sonam yadav said...

आदरणीय डॉ कुंवर बेचैन जी को सामने से बहुत बार सुनने का अवसर मिला और गाजियाबाद की काव्य गोष्ठी से मेरा साक्षात्कार उन्होंने ही कराया उनकी सौम्य स्मृतियों को सादर नमन उनके गीत सचमुच भावनाओं के ज्वार को समेटे हुए रहते हैं।

Alok Misra said...

मुखड़ा पढ़कर ही पाठक के मन में एक टीस उठती है |वियोग सृंगार का अद्भुत गीत |

- आलोक मिश्रा