Wednesday, August 02, 2023

सुहागिन का गीत

यह डूबी-डूबी  साँझ, 
उदासी का आलम
मैं बहुत अनमनी 
चले नहीं जाना बालम!

ड्योढ़ी पर पहले दीप जलाने दो मुझ को
तुलसी जी की आरती सजाने दो मुझ को
मंदिर  में घंटे, शंख और घड़ियाल बजे
पूजा की सांँझ, सँझौती गाने दो मुझ को
उगने तो दो उत्तर में पहले ध्रुव-तारा
पथ के पीपल पर कर आने दो उजियारा
पगडण्डी पर जल-फूल-दीप धर आने दो,
चरणामृत जा कर ठाकुर जी का लाने दो
यह डूबी-डूबी  साँझ, उदासी का आलम
मैं बहुत अनमनी चले नहीं जाना बालम!

यह काली-काली रात
बेबसी का आलम
मैं डरी-डरी-सी
चले नहीं जाना बालम!
बेले की पहले ये कलियाँ खिल जाने दो
कल का उत्तर पहले इन से मिल जाने दो
तुम क्या जानो ये किन प्रश्नों की गाँठ पड़ी?
रजनीगंधा से ज्वार सुरभि को आने दो
इस नीम-ओट से ऊपर उठने दो चन्दा,
घर के आँगन में तनिक रोशनी आने दो,
कर लेने दो तुम मुझ को बन्द कपाट ज़रा,
कमरे के दीपक को पहले सो जाने दो,
यह काली-काली रात बेबसी का आलम
मैं डरी-डरी-सी चले नहीं जाना बालम!

यह ठण्डी-ठण्डी रात 
उनींदा-सा आलम
मैं नींद-भरी-सी, 
चले नहीं जाना बालम!
चुप रहो ज़रा सपना पूरा हो जाने दो,
घर की मैना को ज़रा प्रभाती गाने दो,
ख़ामोश धरा-आकाश, दिशाएँ सोयी हैं,
तुम क्या जानो, क्या सोच, रात-भर रोयी हैं?
ये फूल सेज के चरणों में धर देने दो,
मुझ को आँचल में हरसिंगार भर लेने दो,
मिटने दो आँखों के आगे का अँधियारा,
पथ पर पूरा-पूरा प्रकाश हो लेने दो,
यह ठण्डी-ठण्डी रात उनींदा-सा आलम
मैं नींद-भरी-सी, चले नहीं जाना बालम!

-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

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