Thursday, November 23, 2023

फिर पूजन के शंख बजे

फिर पूजन के शंख बजे 
फिर खनक उठे कंगन
जाने किस के बोल 
भोर की चुप्पी तोड़ गये

अलसाये सुमनों में फिर से 
मधु मुस्कान भरी
गूँज उठी मन्दिर- मस्जिद में 
बातें ज्ञान भरी
नरम अँगुलियाँ लड़ बैठीं 
फिर लौह बर्तनों से
बैलों की गर्दन में घुँघरू ने 
फिर तान भरी
दूर कहीं हलवाहे ने 
फिर छेड़ी तान मधुर
लम्बी धुन में चलते-चलते 
अनगिन मोड़ गये
फिर पूजन के...।

आँगन में चितचोर कन्हैया 
फिर से मचल पड़े
पनघट पर राधाओं के पग 
फिर से फिसल पड़े
बाबाजी का राम-राम जप 
फिर से शुरू हुआ
कोलाहल के बीच परिन्दे 
फिर से निकल पड़े
द्वारे पर दो आँसू टपके 
विरह वेदना के
जाने वाले आने के 
फिर वादे छोड़ गये
फिर पूजन के...।

सोना, फिर जगना, फिर हँसना, 
फिर आहें भरना
जीवन की सच्चाई है तो 
फिर कैसा डरना
सूरज की नव किरणें हमसे 
फिर से कहती हैं
नवजीवन के लिए आज है 
फिर से कुछ करना
कदम चूमती रही सफलता 
अज्ञानी उनके
जो अपने जीवन को 
संघर्षों से जोड़ गये
फिर पूजन के...।

-डा. अशोक अज्ञानी

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