Saturday, July 28, 2018

मनुहार

क्यों रूठे हो, क्या भूल हुई
किसलिए आज हो खिन्न हुए
जो थे अभिन्न दो हृदय देव
वे आज कहो क्यों भिन्न हुए
सुख की कितनी अतुलित घड़ियाँ
हमने मिल साथ बितायी हैं
कितनी ही कठिन समस्याएँ
हमने मिलकर सुलझायी हैं

मिल बैठे दोनों जहाँ कहीं
संसार हमारा वहीं हुआ
था स्वर्ग तुच्छ इन आँखों में
यदि एक वहाँ पर नहीं हुआ
तुम थे मेरे सर्वस्व और मैं
जीवन-ज्योति तुम्हारी थी
मैं तुममें थी, तुम मुझ में थे
हम दोनों की गति न्यारी थी

है ज्ञात मुझे सौ-सौ मेरे
अपराध क्षमा करते थे तुम
मेरी कितनी त्रुटियों पर भी
कुछ ध्यान नहीं धरते थे तुम
फिर क्या अपराध हुआ जिससे
रूखा व्यवहार तुम्हारा है
उन अपराधों से क्या कोई
अपराध इस समय न्यारा है

बोलो, अब कृपा करो, कह दो
कह दो, अब रहा नहीं जाता
यह मौन तुम्हारा हे मानी
मुझ से अब सहा नहीं जाता
हँसती हूँ, बातें करती हूँ
खाती-पीती हूँ, जीती हूँ
यह पीर छिपाये अन्तर में
चुपचाप अश्रु-कण पीती हूँ

यह मर्म-कथा अपनी ही है
औरों को नहीं सुनाऊँगी
तुम रूठो सौ-सौ बार तुम्हें
पैरों पड़ सदा मनाऊँगी
बस, बहुत हो चुका, क्षमा करो
अवसाद हटा दो अब मेरा
खो दिया जिसे मद में मैंने
लाओ, दे दो वह सब मेरा

प्रिय ! हृदय-देश में फिर अपने
जम जाने दो आसन मेरा
बन जाने दो रानी फिर से
दे दो, दे दो शासन मेरा
दे दो सुख का साम्राज्य मुझे
दोनों दिल फिर मिल जाने दो
मुरझाई जाती आशा की
कलियों को फिर खिल जाने दो

-सुभद्रा कुमारी चौहान

No comments: