Wednesday, August 01, 2018

प्रीत के गाँव में

प्रीत के गाँव में एक हलचल हुई
खिल गयी भावना की कली हर कली

द्वार-देहरी में नयना बिछाये रही
अल्पना रजनीगंधा सजाये रही
मृत्तिका के कलश नेह-जल से भरे
आचमन के लिए मैं उठाये रही
कामना अर्चना- गीत बन बावरी
मन-कमल-कोष मकरंद सी है पली

आहटें धड़कनों को बढ़ाने लगीं
मत्त आलस पलक भर उठाने लगीं
झूमती ये बयारें कहें कान में
तन की सुध बुध भला क्यूँ गँवाने लगीं?
याद चंदन की खुशबू लिये हाथ में
फिर महकती फिरी है गली हर गली

पाखियों को खबर जाने कैसे मिली
स्वर मधुर रागिनी के वो गाने लगीं
ढूँढ़ती हैं बसेरा विकल गाँव में
नीड़ फिर गाँव बाहर बनाने लगीं
चित्त-वातायनों से निहारा तनिक
टोली जंगल में मगल मनाने चली
 प्रीत के गाँव में एक हलचल हुई
खिल गई भावना की कली हर कली

-डॉ मंजु लता श्रीवास्तव

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