Friday, November 17, 2023

रजनीगंधा रूप तुम्हारा

रजनीगंधा रूप तुम्हारा
बसा हुआ तन-मन में 

देह न बासी हुई कभी भी,
गात न कुम्हलाया 
मुस्काता श्वेताभ बाँकपन,
यौवन पर छाया 
जब-जब गंध बिखेरी तुमने,
धूम मची उपवन में 
रजनीगंधा रूप तुम्हारा...

अनजाना मधुमास पास,
आ-आकर ठिठक गया 
अंग-अंग की लाज तुम्हारी,
गढ़ती मिथक नया 
देखा जब, तब वैसे पाया 
जीवन के दरपन में 
रजनीगंधा रूप तुम्हारा...

ऐ मेरे पल-छिन के साथी,
साथ-साथ मुरझाना
रंग-रंग निखरें कण-कण के,
जब तक साथ निभाना
तुम-सा मिला न कोई दूजा,
ढूँढ़ थका घर-वन में 
रजनीगंधा रूप तुम्हारा
बसा हुआ तन-मन में।

-उमा प्रसाद लोधी

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