Friday, August 04, 2023

विश्वास बहुत है

जाने क्यों तुमसे मिलने की, 
आशा कम विश्वास बहुत है
सहसा भूली याद तुम्हारी 
उर में आग लगा जाती है,
विरहातप भी मधुर-मिलन के 
सोये मेघ जगा जाती है,
मुझको आग और पानी में 
रहने का अभ्यास बहुत है,
जाने क्यों तुमसे...

धन्य-धन्य मेरी लघुता को 
जिसने तुम्हें महान बनाया,
धन्य तुम्हारी स्नेह-कृपणता 
जिसने मुझे उदार बनाया;
मेरी अन्ध-भक्ति को केवल 
इतना मन्द प्रकाश बहुत है,
जाने क्यों तुमसे  ... 

अगणित शलभों के दल के दल 
एक ज्योति पर जलकर मरते,
एक बूँद की अभिलाषा में 
कोटि-कोटि चातक तप करते;
शशि के पास सुधा थोड़ी है 
पर चकोर की प्यास बहुत है,
जाने क्यों तुमसे... 

मैंने आँखें खोल देख ली है 
नादानी उन्मादों की,
मैंने सुनी और समझी है
कठिन कहानी अवसादों की;
फिर भी जीवन के पृष्ठों में 
पढ़ने को इतिहास बहुत है,
जाने क्यों तुमसे ... 

ओ जीवन के थके पखेरू, 
बढ़े चलो हिम्मत मत हारो,
पंखों में भविष्य बन्दी है
मत अतीत की ओर निहारो,
क्या चिन्ता धरती यदि छूटी 
उड़ने को आकाश बहुत है
जाने क्यों तुमसे मिलने की,
आशा कम विश्वास बहुत है।

-बलबीर सिंह 'रंग'

4 comments:

स्नेहा देव said...

बहुत खूबसूरत लिखा है। बधाई

नमिता सिंह said...

बहुत ही सुंदर गीत 'आशा कम विश्वास बहुत है' यह पंक्ति ही दिल छू लेती है।

डॉ. राय कूकणा, ऑस्ट्रेलिया said...

वाह…रंग जी का अति सुंदर प्रेमगीत!
अन्तिम बन्द -विशेषकर ये पंक्तियाँ- बहुत भायीं।
“पंखों में भविष्य बन्दी है,
मत अतीत की ओर निहारो;
क्या चिन्ता धरती यदि छूटी,
उड़ने को आकाश बहुत है”
- राय कूकणा, ऑस्ट्रेलिया

अमिता शाह-'अमी' said...

बहुत सुंदर गीत