Saturday, August 12, 2023

जब तुम हो जाती हो उदास !

तुम कितनी सुन्दर लगती हो
जब तुम हो जाती हो उदास !
ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में 
सूने खँडहर के आसपास
मदभरी चाँदनी जगती हो 
तुम कितनी सुन्दर... 

मुँह पर ढँक लेती हो आँचल
ज्यों डूब रहे रवि पर बादल,
या दिन-भर उड़कर थकी किरन,
सो जाती हो पाँखें समेट, 
आँचल में अलस उदासी बन 
दो भूले-भटके सान्ध्य-विहग, 
पुतली में कर लेते निवास 
तुम कितनी सुन्दर...

खारे आँसू से धुले गाल
रूखे हलके अधखुले बाल,
बालों में अजब सुनहरापन,
झरती ज्यों रेशम की किरनें, 
संझा की बदरी से छन-छन 
मिसरी के होठों पर सूखी 
किन अरमानों की विकल प्यास 
तुम कितनी सुन्दर...

भँवरों की पाँतें उतर-उतर
कानों में झुककर गुन-गुनकर
हैं पूछ रहीं- क्या बात सखी ? 
उन्मन पलकों की कोरों में 
क्यों दबी ढँकी बरसात सखी ?
चम्पई वक्ष को छूकर क्यों 
उड़ जाती केसर की उसाँस ?
तुम कितनी सुन्दर लगती हो
ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में 
सूने खँडहर के आसपास
मदभरी चाँदनी जगती हो !
तुम कितनी सुन्दर लगती हो...

-धर्मवीर भारती

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