Thursday, August 03, 2023

मैं प्यासा भृंग जनम भर का

मैं प्यासा भृंग जनम भर का
फिर मेरी प्यास बुझाए क्या
दुनिया का प्यार रसम भर का
मैं प्यासा भृंग जनम भर का

चंदा का प्यार चकोरों तक
तारों का लोचन-कोरों तक
पावस की प्रीति क्षणिक सीमित
बादल से लेकर भँवरों तक
मधु-ऋतु में हृदय लुटाऊँ तो,
कलियों का प्यार कसम भर का
मैं प्यासा भृंग ... 

महफ़िल में नज़रों की चोरी
पनघट का ढँग सीनाजोरी
गलियों में शीश झुकाऊँ तो
यह दो घूँटों की कमज़ोरी
ठुमरी ठुमके या ग़ज़ल छिड़े
कोठे का प्यार रकम भर का
मैं प्यासा भृंग ... 

जाहिर में प्रीति भटकती है
परदे की प्रीति खटकती है
नयनों में रूप बसाओ तो
नियमों पर बात अटकती है
नियमों का आँचल पकड़ूँ तो
घूँघट का प्यार शरम भर का
मैं प्यासा भृंग... 

जीवन से है आदर्श बड़ा
पर दुनिया में अपकर्ष बड़ा
दो दिन जीने के लिए यहाँ
करना पड़ता संघर्ष बड़ा
संन्यासी बनकर विचरूँ तो
संतों का प्यार चिलम भर का
मैं प्यासा भृंग जनम भर का।

-गोपाल सिंह नेपाली

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