नदी किनारे
चलो सजन
हम थकन मिटाएँगे
झरने लगे नाचने-गाने
चट्टानें शर्माईं
बर्फीले टीले पिघले हैं
वनराई मुस्काई
उछल रहे हैं उधर फुहारे
तपन मिटाएँगे
नदी किनारे...
चन्दन वन से चलीं हवाएँ
आने वाली हैं
धुंध घुटन से भरी खिजाएँ
जाने वाली हैं
मधु पराग के सेवाकर्मी
चरन दबाएँगे
थकन मिटाएँगे
नदी किनारे...
ऋतुएँ लगी बदलने कपड़े
गहने बदलेंगी
धानी चूनर ओढ़
खेत की
फसलें मचलेंगी
ऋतुओं के ऋतुराज सजन
आभरण लुटाएँगे
नदी किनारे...
-डॉ. मनोहर अभय
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