अब तुम्हारा प्यार लेकर क्या करूँगा
पीर में कोई तपन बाक़ी नहीं है
आज तक परछाइयों का हाथ थामें
ज़िन्दगी जाने किधर चलती रही है
आस की अमराइयों की छाँव में ही
कामना ये ही कहीं पलती रही है
मैं निरी मनुहार लेकर क्या करूँगा
बात में कोई बचन बाकी है
अब तुम्हारा प्यार लेकर ...
आज दुनिया के सहेजे बन्धनों में
बढ़ रही है द्वंदता, कटुता, विषमता
भावनाओं से भरे संसार भर में
निकटता ही साथ ले आती विलगता
मैं निरा आकाश लेकर क्या करूँगा
है तिमिर, कोई किरन बाक़ी नहीं है
अब तुम्हारा प्यार लेकर क्या करूँगा
अब तुम्हारा प्यार लेकर ...
मैं चलूँ कब तक, कहाँ तक बिजन पथ ये
शूल हैं, कोई पथिक पाता नहीं हूँ
मैं किसे समझूँ अजाने पथ में रहबर
सब भ्रमित हैं क्यूँ समझ पाता नहीं हूँ
मैं सहज अभिसार पाकर क्या करूँगा
वन्दना तो है नमन बाक़ी नहीं है
अब तुम्हारा प्यार लेकर क्या करूँगा
अब तुम्हारा प्यार लेकर ...
-शैलेन्द्र कुलश्रेष्ठ
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