छेड़ गयी वह कोकिल-कंठी
एक सुरीले गान से
ठूँठ हृदय को हरा कर गयी
एक अनसुनी तान से
मुख पर विषाद की कोई
रेख न भय की छाया
उसकी उज्ज्वल चितवन से
मावस मन घबराया
और बहुत हैरान हुआ मैं
जोगनिया मुस्कान से
छेड़ गयी वह...
प्यास, स्वार्थ के जग की मुझमें
प्यास न मीरा-सी
बेर कहाँ मैं खट्टा हूँ
कहाँ भक्ति शबरी की
कौन तार बज गया,
न बजता संगीतज्ञ महान से
छेड़ गयी वह...
मैं कलियुग का सच हूँ,
सच का निपुण प्रवक्ता-सा
आँखें तो टपकें पर
हिरदय पुरइन पत्ता-सा
अक्ल खुली क्या मुक्त हुआ-
मन दुनिया के सामान से
छेड़ गयी वह...
-वीरेन्द्र आस्तिक
1 comment:
भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
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