Friday, October 20, 2023

छेड़ गयी वह कोकिल-कंठी

छेड़ गयी वह कोकिल-कंठी
एक  सुरीले  गान  से
ठूँठ हृदय को हरा कर गयी
एक अनसुनी तान से

मुख पर विषाद की कोई
रेख न भय की छाया
उसकी उज्ज्वल चितवन से
मावस मन घबराया
और बहुत हैरान हुआ मैं
जोगनिया  मुस्कान  से
छेड़ गयी वह... 

प्यास, स्वार्थ  के जग की मुझमें
प्यास न मीरा-सी
बेर कहाँ मैं खट्टा हूँ
कहाँ भक्ति शबरी की
कौन तार बज गया, 
न बजता संगीतज्ञ महान से
छेड़ गयी वह... 

मैं कलियुग का सच हूँ, 
सच का निपुण प्रवक्ता-सा
आँखें तो टपकें पर
हिरदय पुरइन पत्ता-सा
अक्ल खुली क्या मुक्त हुआ-
मन दुनिया के सामान से
छेड़ गयी वह... 
        
-वीरेन्द्र आस्तिक

1 comment:

डॉ विनीता कृष्णा said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति।