जब घिरे बदली, बजे मुरली कहीं,
उस रात रंगिनि!
प्यार में गलहार बनकर साथ देना
चाँदनी चूनर न हो मैली इसी से,
स्नेह के दीपक सजाता,
हो न बोझिल मन तुम्हारा, मैं इसी से
प्रीत की वीणा बजाता
जब उतारे तार मन का भार तो उस रात मोहिनि!
राग की झंकार बनकर साथ देना
जब घिरे...
कह नही सकते जिन्हें हम जानकर भी
शेष वे कितनी व्यथाएँ,
और सुननी है, सुनानी हैं मुझे भी
अश्रु की कितनी कथाएँ,
जब उठाये भीगता आँचल निशा, उस पल सुहासिनि !
भोर का गुंजार बन कर साथ देना
जब घिरे...
मीत ! पर सबकी यहाँ राहें अलग हैं,
इसलिये सब दूर होते,
दो घड़ी हँस खेलने पर भी बिछुड़ने,
लिये मजबूर होते
जब करे आकुल तुम्हारी याद,
तो उस पल सभाषिनि!
स्वप्न का सिंगार बनकर साथ देना
जब घिरे बदली बजे मुरली कहीं,
उस रात रंगिनि !
प्यार में गलहार बनकर साथ देना।
-कुंदन लाल उप्रेती
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