Thursday, November 23, 2023

डगर डगर नगर नगर

डगर डगर नगर नगर, गली गली शहर शहर
हरेक राह-गाह में, पुकारता चला गया।

उतार में न तू मिली, न तू किसी चढ़ाव में
न हमसफर बनी न तू, मिली किसी पड़ाव में
न मंजिलों न मरहलों, न मोड़ पर न गाम पर
न हाट में न बाट में, न गैल में न गाँव में
यहाँ नहीं, वहाँ नहीं, तुझे कहाँ कहाँ नहीं
उमर के आर पार तक, निहारता चला गया।
डगर डगर.................... ।।

तुम्हारी उस निगाह में, क्यों शोखी थी, सऊर था
अदाओं का हुजूम था, क्यों शर्म थी, सुरूर था ?
वो वक्त का बहाव था, या उम्र का कुसूर था
कोई-न कोई बात थी, वो कुछ-न-कुछ जुरूर था
उसी वफा की चाह में, उसी हसीं गुनाह में
मैं एक पल में इक उमर, गुजारता चला गया।
डगर डगर.................... ।।

ये कौन-सी तलाश है, जो चल रही है आज भी
ये कौन-सी है प्यास जो कि, छल रही है आज भी
ये कौन-सी वो भूल है, जो खल रही है आज भी
मगर ये कौन-सी है आस, पल रही है आज भी
इसी के ऐतबार पर, जनम की रहगुज़ार पर
मैं हर कदम पै मौत को, नकारता चला गया।
डगर डगर.................... ।।

-विनोद मंडलोई

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