Monday, March 11, 2024

कोई असर नहीं रितुओं की..

कोई असर नहीं रितुओं की
मीठी-मीठी बातों का
लोक लाज के पहरे बैठे
डर है उल्कापातों का

कुहू-कुहू कर कोयल बोले
झूम रही है अमराई
पीली सरसों नाचे छमछम
दूर खड़ी है पुरवाई
किस पर असर नहीं बासंती,
मौसम की सौगातों का
किन्तु तुम्हारा मन है जैसे
चिकना तन हो पातों का
कोई असर नहीं रितुओं की...

चुप रहकर आमंत्रित करती
रही चाँदनी शरमीली
प्रेम-पत्र लेकर आयी है
कासिद पछुआ बरफीली
मन तो एकाकार हो चुका
होना है दो गातों का
और भला क्या हो सकता है
सर्द गुलाबी रातों का
कोई असर नहीं रितुओं की...

घूँघट खोल दिये कलियों ने
भँवरों ने मधुरस घोला
चरम-मिलन के पलड़ों पर फिर
बजन प्यार का भी तोला
बैर हुआ तेरे उसूल से
मेरे इन जजबातों का
खूँटी पर लटकी है लज्जा
क्या डर रिश्ते-नातों का
कोई असर नहीं रितुओं की...

-प्रदीप पुष्पेन्द्र

1 comment:

Poonam Mishra said...

बहुत सुंदर गीत आदरणीय