अब भी आँखों से
बतियाना अच्छा लगता है
हाथों में ले हाथ दबाना
अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
कनखी से नज़रों का मिलना
नीले अधरों पर अड़हुल के
फूलों का खिलना
तेरा बल खाना
शर्माना अच्छा लगता है
साँसों का कुछ-कुछ गर्माना
अच्छा लगता है
अब भी आँखों से...
अच्छा लगता है
दाँतों से तिनके को टुँगना
तन से तन के छू जाने पर
सिहरन का उगना
समय पूछ कर
घड़ी मिलाना अच्छा लगता है
चुटकी, चुहल, चिकोटी,
ताना अच्छा लगता है
अब भी आँखों से...
अच्छा लगता
बूझ पहेली जीवन की लेना
टूट रहे तन का दुख
अँगड़ाई से ढँक देना
थके नयन में
सुबह सजाना, अच्छा लगता है
स्मृतियों पर रंग चढ़ाना
अच्छा लगता है
अब भी आँखों से...
-नचिकेता
6 comments:
बहुत बढ़िया गीत! सुन्दर और सरल शब्दों में मन के मासूम भावों का सुन्दर चित्रण।
सुन्दर बिम्बों से सजा अत्यंत खूबसूरत नवगीत
सुन्दर बिम्बों से सजा उत्कृष्ट नवगीत
अति सुन्दर वर्णन, मन को अन्दर तक छू गया
अब भी आंखों से बतियाना अच्छा लगता है
बहुत अच्छा गीत
बहुत बहुत सुंदर गीत आँखों से बतियाना अच्छा लगता है सुंदर अभिव्यक्ति ।
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