Saturday, September 16, 2023

चलो छिया-छी हो अन्तर में!

चलो छिया-छी हो अन्तर में!
तुम चन्दा
मैं रात सुहागन
चमक-चमक उट्ठें आँगन में
चलो छिया-छी हो अन्तर में!

बिखर-बिखर उट्ठो, मेरे घन,
भर काले अन्तस पर कन-कन,
श्याम-गौर का अर्थ समझ लें
जगत पुतलियाँ शून्य प्रहर में
चलो छिया-छी हो ...

किरनों के भुज, औ अनगिन कर
मेलो, मेरे काले जी पर
उमग-उमग उट्ठे रहस्य,
गोरी बाँहों का श्याम सुन्दर में
चलो छिया-छी हो ...

मत देखो, चमकीली किरनों
जग को, आ चाँदी के साजन!
कहीं चाँदनी मत मिल जावे
जग-यौवन की लहर-लहर में
चलो छिया-छी हो ...

चाहों-सी, आहों-सी, मनु-
हारों-सी, मैं हूँ श्यामल-श्यामल
बिना हाथ आये छुप जाते
हो, क्यों प्रिय किसके मंदिर में
चलो छिया-छी हो ...

कोटि कोटि दृग, में जगमग जो-
हूँ काले स्वर, काले क्षण गिन,
ओ उज्ज्वल श्रम कुछ छू दो
पटरानी को तुम अमर उभर दो
चलो छिया-छी हो ---

चमकील किरनीले शस्त्रों
काट रहे तम श्यामल तिल-तिल
ऊषा का मरघट साजोगे
यही लिख सके चार पहर में
चलो छिया-छी हो ...

ये अंगारे, कहते आये
ये जी के टुकड़े, ये तारे
‘आज मिलोगे’ ‘आज मिलोगे’,
पर हम मिलें न दुनिया-भर में
चलो छिया-छी हो अन्तर में!
        
-पं. माखनलाल चतुर्वेदी 

3 comments:

Sonam yadav said...

ये अंगारे कहते आये
चलो छिया छी हो अंतर में
अनोखे प्रतिमान और बिंबों से सजा गीत

Sonam yadav said...

ये अंगारे कहते आये
चलो छिया छी हो अंतर में
अनोखे प्रतिमान और बिंबों से सस
जा गीत

सोनम

किरन सिंह said...

चलो छिया-छी हो अंतर में सुंदर अभिव्यक्ति