प्रीति भरी पगडंडी की मैं
मीठी प्यास तुम्हें दे दूँगी
तुम मेरी रीती गागर में
विश्वासों का जल भर देना
भावों की अविरल धारा में
जब श्वासों का उद्वेलन हो
तटपाशों में बँधा रहे मन
और हृदय में संवेदन हो,
मैं अपनी जीवन नैया की
वह पतवार तुम्हें दे दूँगी,
तुम मरुथल से जज़्बातों में
एहसासों का जल भर देना
चौखट से द्वारे तक अपना
अंतस्तल आलोक बिखेरे,
कोयलिया नव-गीत सुनाए
बैठ डाल पर साँझ-सवेरे
मैं आँगन की तुलसी बनकर
व्याकुल तन का ताप हरूँगी
तुम अंतस की गहराई में
उच्छवासों का जल भर देना
घर-द्वारे से राजमार्ग तक
हर पल साथ हमारा होगा
प्रबल वेग झंझावाती हों
अपना लक्ष्य किनारा होगा,
मैं चिंतन की रेखाओं का
आराधन तुमको दे दूँगी
तुम मेरे साधना भूमि में
साँसों का संबल भर देना
प्रीति भरी पगडंडी की मैं
मीठी प्यास तुम्हें दे दूँगी
तुम मेरी रीती गागर में
विश्वासों का जल भर देना।
-यशोधरा यादव 'यशो'
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