Friday, November 11, 2022

यह मिलन वरदान भी है

यह मिलन वरदान भी है,
यह मिलन अभिशाप भी है

सुखद स्वर्णिम चार दिन में
कई  जीवन   जी  लिए,
और पल भर में हजारों
सिंधु  दुःख  के  पी  लिए
यह मिलन आनंद भी है,
यह मिलन अनुताप भी है

रहे  मिलते  मन,  मगर
तन - दूरियाँ बढ़ती रहीं
खास  हम  जितना  हुए,
मजबूरियाँ  बढ़ती  रहीं
यह मिलन है बंद पथ भी,
यह मिलन पदचाप भी है

मलयजी  आकांक्षाओं  पर
नियति  के  नाग  हैं,
भावना  के  चंद्रमा  पर
वेदना  के  दाग  हैं
यह मिलन अति मुखर भी है,
यह मिलन चुपचाप भी है

शत्रुता-सा  राग  अपना-
सार्वकालिक  स्मरण  है
बुद्धि की  अवहेलना  है,
बस, हृदय का अनुसरण है
इस मिलन में पुण्य भी है,
इस मिलन में पाप भी है

मजे की यह ठगौरी है,
स्वयं को हम ठग रहे हैं
सो गए परिणाम, लेकिन
स्वप्न अब भी जग रहे हैं
यह मिलन मन-देहरी पर
दमकती पग छाप भी है

बसी मन में किसी मूरत 
की मधुर आराधना है
सिर्फ खोना लक्ष्य जिसका
यह मिलन वह साधना है
यह मिलन खुद मंत्र भी है,
और खुद ही जाप भी है

-डा. नागेश पांडेय ‘संजय’

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