Tuesday, July 24, 2018

मधुर मिलन की रात

मन चरखे पर प्यार
गुजरिया धीरे-धीरे कात
बहुत दूर है अभी बाबरी
मधुर मिलन की रात
गुजरिया धीरे-धीरे कात

गुम ना करना सिट्टी पिट्टी
चढ़ी चाक पर गीली मिट्टी
तुम्हें सौंपनी कल के हाथों
मिट्टी की सौगात
गुजरिया धीरे-धीरे कात

आज वक्त मूड़े पर आया
गूजरा दिन जूड़े पर आया
चुपके-चुपके भरी गोद में
कुछ नन्हे जजबात
गुजरिया धीरे-धीरे कात

रात आये, पर सो मत जाना
किसी स्वप्न में खो मत जाना
अर्द्धरात्रि में आयेगा वो
तुझसे करने बात
गुजरिया धीरे-धीरे कात
         
-श्रीमती पद्मेश श्रीवास्तव 'पद्मेश'
 

No comments: