धर गये मेंहदी रचे
दो हाथ जल में दीप
जन्म-जन्मों ताल-सा
हिलता रहा मन
बाँचते हम रह गये
अन्तर्कथा
स्वर्णकेशा-
गीत-वधुओं की व्यथा
ले गया चुनकर कमल
कोई हठी युवराज
देर तक शैवाल-सा
हिलता रहा मन
दो हाथ जल में दीप
जन्म-जन्मों ताल-सा
हिलता रहा मन
बाँचते हम रह गये
अन्तर्कथा
स्वर्णकेशा-
गीत-वधुओं की व्यथा
ले गया चुनकर कमल
कोई हठी युवराज
देर तक शैवाल-सा
हिलता रहा मन
धर गये मेंहदी रचे...
जंगलों का दुख
तटों की त्रासदी
भूल, सुख से सो गई
कोई नदी
थक गई लड़ती हवाओं से
अभागी नाव
और झीने पाल-सा
हिलता रहा मन
जंगलों का दुख
तटों की त्रासदी
भूल, सुख से सो गई
कोई नदी
थक गई लड़ती हवाओं से
अभागी नाव
और झीने पाल-सा
हिलता रहा मन
धर गये मेंहदी रचे...
तुम गये क्या
जग हुआ अंधा कुआँ
रेल छूटी, रह गया
केवल धुआँ
गुनगुनाते हम-
तुम गये क्या
जग हुआ अंधा कुआँ
रेल छूटी, रह गया
केवल धुआँ
गुनगुनाते हम-
भरी आँखों
फिरे सब रात
हाथ के रूमाल-सा
हिलता रहा मन
फिरे सब रात
हाथ के रूमाल-सा
हिलता रहा मन
धर गये मेंहदी रचे...
-किशन सरोज
-किशन सरोज
2 comments:
वह क्या खूब ! कितना समझाया - छाया मत छूना मन, मगर मन की मनमानी चलती रही... मन को छू जाने वाली रचना! धन्यवाद व्योम सर साझा करने के लिए.
बहुत खूब! कितना समझाया मन को- छाया मत छूना मन, मगर मन की मनमानी चलती रही. मन को छू जाने वाली रचना! धन्यवाद व्योम सर साझा करने के लिए. अति सुंदर
रेखा शर्मा
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