बिक जाता है मौत के हाथों
जीवन आधी रात के बाद
इंसां हो जाता है कितना
निर्धन आधी रात के बाद
वो तो वो हैं इस दिल से भी
पहरों बात नहीं होती
खुद से हो जाती है अक्सर
अनबन आधी रात के बाद
दीवारों पर लहराते हैं
उनकी जु़ल्फ़ों के साए
खुश्बूओं से बस जाता है
आँगन आधी रात के बाद
चाँद की पिछली तारीखें हैं
देर से चमकेगा अंबर
दिल कहता है आज आयेंगे
साजन आधी रात के बाद
मेरी सूरत देख रही है
यूँ मेरी परछाईं आज
जैसे कोई बिरहन देखे
दर्पन आधी रात के बाद
घिर-घिर कर आये हैं
भूली बिसरी यादों के बादल
थम-थम कर बरसा है बैरी
सावन आधी रात के बाद
पीछे मुड़ कर देख न साथी
फैला है इक मायाजाल
देखने वाले बन जाते हैं
पाहन आधी रात के बाद
उनकी आवाज़ें भी सुन
फुटपाथों पर बजते हैं जो
घुँघरू आधी रात से पहले
कंगन आधी रात के बाद
घर से बेघर हो जाती हैं
आवाज़ों की सीताएँ
जाग उठते हैं सन्नाटों के
रावन आधी रात के बाद
कैसे रिश्ते कैसे नाते कैसे
फ़र्ज़-ओ-उसूल ‘शरीफ़’
टूट के रह जाते हैं सारे
बंधन आधी रात के बाद।
-शरीफ़ कुरैशी
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