Tuesday, December 08, 2020

घुँघरू आधी रात से पहले

बिक जाता है मौत के हाथों 
जीवन आधी रात के बाद
इंसां हो जाता है कितना 
निर्धन आधी रात के बाद

वो तो वो हैं इस दिल से भी 
पहरों बात नहीं होती
खुद से हो जाती है अक्सर 
अनबन आधी रात के बाद

दीवारों पर लहराते हैं 
उनकी जु़ल्फ़ों के साए
खुश्बूओं से बस जाता है 
आँगन आधी रात के बाद

चाँद की पिछली तारीखें हैं 
देर से चमकेगा अंबर
दिल कहता है आज आयेंगे 
साजन आधी रात के बाद

मेरी सूरत देख रही है 
यूँ मेरी परछाईं आज
जैसे कोई बिरहन देखे 
दर्पन आधी रात के बाद

घिर-घिर कर आये हैं 
भूली बिसरी यादों के बादल
थम-थम कर बरसा है बैरी 
सावन आधी रात के बाद

पीछे मुड़ कर देख न साथी 
फैला है इक मायाजाल
देखने वाले बन जाते हैं 
पाहन आधी रात के बाद

उनकी आवाज़ें भी सुन 
फुटपाथों पर बजते हैं जो
घुँघरू आधी रात से पहले 
कंगन आधी रात के बाद

घर से बेघर हो जाती हैं 
आवाज़ों की सीताएँ
जाग उठते हैं सन्नाटों के 
रावन आधी रात के बाद

कैसे रिश्ते कैसे नाते कैसे 
फ़र्ज़-ओ-उसूल ‘शरीफ़’
टूट के रह जाते हैं सारे 
बंधन आधी रात के बाद।
          
-शरीफ़ कुरैशी 

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