Tuesday, December 08, 2020

मौन झील आज कुनमुनाई

मौन झील आज कुनमुनाई
लहरों ने बाँसुरी बजाई।

तट के शैवालों ने आज
तोड़ी है घूँघट की लाज
मुखर हुए अनकहे अनुबंध
मौन हुए लहरों के साज।
स्तम्भित बाँहों के घेरे में
चन्दन-सी देह कसमसाई।
मौन झील आज कुनमुनाई।।

ये ऊँची पर्वत मालायें
पोर-पोर अन्तर बहलायें
घाटियों में देह गन्ध बहकी
महकी हैं प्रस्तरी शिलायें
हिमगिरि के आँचल में सरिता ने
ली है फिर मादक अँगड़ाई।
मौन झील आज कुनमुनाई।।

अँधियारे नागपाश वाले
आलिंगन बाहुपाश डाले
आल्हादित अधर मौन बाँधे
अनियारे नैन जाल डाले
अनजानी उर बेधी पीड़ा की
फिर सोई पीर कसक आई।
मौन झील आज कुनमुनाई।।
      
-उमाशंकर वर्मा ‘साहिल’

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