आज मेरा गीत सुन लो
यह कहानी हो न हो फिर
फिर सभा जुड़ जाय ऐसी
मुग्ध वाणी हो न हो फिर।
बीत जाते जो सुखद क्षण
लौट कर आते नहीं हैं
फिर लहरती गंध वाले
पुष्प खिल पाते नहीं हैं
क्या पता हम कब मिलें फिर
चौंक कर पहचान भी लें
प्रेरणा के घाट भी हों
प्रीति-पानी हो न हो फिर
आज मेरा गीत सुन लो...
कौन झुक कर थाम लेगा
बेसुधी में भी पता है
मंदिरों को भी विदित है
कौन मेरा देवता है
इन्द्रधनुषी साँझ साथी
मन बसंती हो रहा है
फूल जूड़े में सजा दो
ऋतु सुहानी हो न हो फिर।
आज मेरा गीत सुन लो...
कल्पना में तट नदी के
स्वागतम् लिखती रही हूँ
एक कोई आ रहा है
रात भर जगती रही हूँ
आज मन अनुरागमय है
प्राण की वीणा मुखर है
कल कहाँ किसकी परिधि हो
दृष्टि दानी हो न हो फिर
आज मेरा गीत सुन लो...
-ज्ञानवती सक्सेना
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