जीवन दुःख से भार न होता
काश! हृदय में प्यार न होता।।
प्यार बिना मन कैसे खिलता
फिर किससे कोई क्यों मिलता
मिलता जब न, बिछुड़ता कैसे
तब क्यों कर होती व्याकुलता
निपट अकेला भवसागर में
माँझी बिन पतवार न होता।
करता कौन प्यार की बातें
खलती नहीं जागती रातें
क्यों दिल के विश्वास टूटते
होती न आँसू की बरसातें
जख़्म लिये दिन-रात रुलाने
कोई बेवफा यार न होता।
सारा जीवन भ्रम में बीता
सपनों में हारा या जीता
भरता रहा निरन्तर फिर भी
मन का घट रीता का रीता
तड़फ-तड़फ कर ज़िन्दा रहने
यह तन कारागर न होता।।
लोग किसी के क्यों घर जाते
नहीं बनाते रिश्ते-नाते
स्वयं बनाये संबन्धों की
नहीं फर्ज की रस्म निभाते
खोज-खोज दुःख पहुँचाने को
कोई रिश्तेदार न होता।
-शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
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