मीत आओ कदम दो कदम संग तुम
जि़न्दगी का सफर हँस के कट जायेगा
दीपिकाओं का झिलमिल वरो नेह तुम
तम का तूफान कुहरे-सा छट जायेगा
जग तो शतरंज है दाँव चलता समय
मात उसकी जिसे शह पै शह ही मिली
जिन्दगी तो वही हार को जीत ले
हारकर टूटना तो मरण बुजदिली
जीत पाओ सम्हल ये समय का भरम
उजड़ा नन्दन बहारों से पट जायेगा।
तुम सताई हुई तो किसी शापवश
या भुलाया तुम्हें ढीठ घनश्याम ने
या कि निर्दोष सीता हो ठुकरा दिया
सिर्फ निन्दा के भय से किसी राम ने
प्रीति छाओ सघन आम्रकुंजों-सी तुम
गूँज वंशी-सा यमुना का तट जायेगा।
मुझको तुम भी कोई मेरे अपने लगे
तुमको देखा हृदय दीप-सा जल उठा
वह मेरे गीत का दर्द तुम प्रेरणे!
सुन के पत्थर पिघल मोम-सा गल उठा
वेदना का समुन्दर जो मथता मरम
आईना आरजू बन सिमट जायेगा।
तुम न मन की जलन में दहाओ बदन
छटपटाओ न तुम दर्द में मीन-सी
भूल जाओ गलत थी गलत वह गज़ल
झनझनाओ न व्याकुल करुण वीण-सी
गीत गाओ मिलन के जरा झूम तुम
प्यार में दर्द घुलमिल के बँट जायेगा।
-डा० राजेन्द्र मिलन
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