Wednesday, December 02, 2020

पिउ पिउ न पपिहरा बोल

पिउ पिउ न पपिहरा बोल, 
व्यथा के बादल घिर आयेंगे
होगी रिमझिम बरसात 
पुराने ज़ख्म उभर आयेंगे

आँखों के मिस दे दिया निमंत्रण 
मुझे किसी ने जब से
सुधियों की बदली उमड़-घुमड़ 
घेरे रहती है तब से
मीरां के भजन, मुझे लगता अब, 
सम्बल बन जायेंगे
होगी रिमझिम बरसात ...

वह प्रथम प्रीति का परिरम्भण 
या मेरे मन का धोखा
रह गया शेष अब उस चितवन का 
केवल लेखा-जोखा
ये संचित कोष, आँसुओं के मिस, 
गल-गल बह जायेंगे
होगी रिमझिम बरसात ...

फिर-फिर न जगा तू पीर पपीहा, 
घायल इकतारों की
इतिहास प्रीति का बनती हैं 
गाथाएँ बंजारों की
हम, जुड़े हुए धागों के बंधन 
तोड़ नहीं पायेंगे
होगी रिमझिम बरसात ...

जाने अब क्यों शंका होती है, 
अपने उच्छवासों पर
भावों का महल बना करता है 
केवल विश्वासें पर
है विस्तृत ‘व्योम’ कहाँ, किस तट पर, 
कैसे मिल पायेंगे।
होगी रिमझिम बरसात 
पुराने ज़ख्म उभर आयेंगे
                
-डा० जगदीश व्योम

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