करो न ज्यादा मान सुनयने !
बिखरा दो मुस्कान सुनयने
अनबन के इस काल खण्ड में‚
खण्ड-खण्ड न हो अभिलाषा
बिना मिलन के प्यार अधूरा
कब से बता रही परिभाषा
बिना प्यार की सासों के
सारे प्राणी निष्प्राण सुनयने!
देह कुटी में प्रीत सयानी
सीता बैठी है जब तक ही
पर्ण कुटी की परम रम्यता
वैभवशाली है तब तक ही
वरना सूनी सूनी कुटिया
सूने सब सामान सुनयने!
नेह भरा साँबरियाँ जब तक
बीन बजाये तब तक पनघट
तब तक ही जागृत वृन्दावन
गुंजित तब तक ही बंशी वट
वरना लुटी लुटी सी दुनिया
सूना सभी जहान सुनयने!
जब तक प्यार भरा आँखों में
तब तक कृष्ण कन्हैया गोरे
यौवन में मादकता तब तक‚
तब तक लाल दृगों के डोरे
बिना प्यार के रीती गागर
बगिया भी वीरान सुनयने!
नेह भरा जादू साँसों के–
जब तक संग धड़कता रहता
जीवन के आंगन में तब तक
यह शृंगार महकता रहता
बिना प्यार के कभी न गाया
भौरों ने निज गान सुनयने!
-गिरिमोहन गुरु
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