रहे सींचते, ऊसर बंजर
हरियाली के दरस न पाए
आज
अषाढ़ी अहसासों पर
सुधि के
सघन मेघ घिर छाए।
रातों को छोटा कर देती
थी लम्बी पगली वार्ताएं
और शीत की ठिठुरन वाली
वे मादक कोमल ऊष्माएँ
ओस नहायी
किरन कुनकुनी
छुए अंग अलसाए
सुधि के सघन मेघ ...
अँधियारों में कभी लिखी थी
जो उजियारी प्रणय कथाएँ
भरी दुपहरी बाँचा करती
थीं उनको चन्दनी हवाएँ
हरित कछारों में
दिन हिरना
जाने कहों कहाँ भरमाए
सुधि के सघन मेघ ...
संस्पर्शों के मौन स्वरों में
कितने वाद्य निनाद ध्वनित थे
किसी अजाने स्वर्गलोक के
रस के अमृत कलश स्रवित थे
प्राण-प्राण पुलकित
अधरों ने
जब अपने
मधुकोश लुटाए
सुधि के सघन मेघ ...
बाँध नहीं पाते शब्दों में
पल-पल पुलकित
वे पावनक्शण
बूँद-बूँद में प्राप्त तृप्ति-सुख
साँस-साँस में अर्पण-अर्पण
उल्लासों के वे मृग-छौने
नहीं लौटकर फिर घर आए
सुधि के सघन मेघ ...
-यतीन्द्रनाथ राही
4 comments:
वाह बहुत ही अनुपम अभिव्यक्ति।
मन को छूते भाव।
वाह बहुत ही अनुपम अभिव्यक्ति।
मन को छूते भाव।
वाह! प्रेम की अद्भुत अभिव्यक्ति इतनी पवित्रता से।
अंधियारों ने कभी लिखीं थीं
उजियारी सी प्रणय कथायें
अप्रतिम सौंदर्य से सजा गीत
सोनम यादव
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