चन्द्रसेन विराट हिंदी के लोकप्रिय साहित्यकार हैं, अनेक विधाओं में साहित्य सृजन करने वाले विराट जी गीत विधा के सिद्धहस्त रचनाकार रहे हैं, उनके इस प्रेमगीत को पढ़ें और प्रतिक्रिया लिखें...
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जो न समेटा जाये मुझसे,
मुझको इतना प्यार नहीं दो
क्षर प्राणों को ढाई अक्षर का
इतना गुरु भार नहीं दो
मेरा जीवन मुक्त-काव्य है
तुम तो छन्दमयी रचना हो
मैं काजल की राहों वाला
तुम बिलकुल उज्ज्वल-वसना हो
दृगद्युति से अंधे हो जायें
तुम इतना उजियार नहीं दो
जीवन भर न चुके ऋण जिसका
तुम इतना आभार नहीं दो
मुझको इतना...
अभी न रेशम गाँठ बँधी है
चाहो तो यह सूत्र तोड़ लो
मेरा क्या होगा मत सोचो
तुम तो अपना पाँव मोड़ लो
मन के शीशमहल में मुझको
आने का अधिकार नहीं दो
दर्पण, पाहन का क्या परिचय,
परिचय का विस्तार नहीं दो
मुझको इतना...
मैं अनाथ दृग का आँसू हूँ
मेरा मूल्य नहीं आँको तुम
वीराने में खिला फूल हूँ,
मुझे न जूड़े में टाँको तुम
मेरे आवारा मन को तुम
ममता का व्यवहार नहीं दो
बुझ जाने दो मुझ दीपक को,
किन्तु स्नेह की धार नहीं दो
मुझको इतना...
-चन्द्रसेन विराट
10 comments:
वाह वाह। प्रेमिक सत्य बोध कराने का अनदेखा प्रयत्न!
अत्यंत सुंदर ।
विराट जी को बहुत सुंदर प्रेम गीत के लिए हार्दिक बधाई । रेणु चन्द्रा
अहा!प्रेम के ढाई अक्षरों का इतना विस्तृत फैलाव! मन को छू जाने वाली रचना.
-रेखा शर्मा
चन्द्रसेन विराट जी का यह गीत निःस्वार्थ और निष्काम प्रेम की अद्भुत अभिव्यक्ति है। कवि को नमन।
बहुत ही सुंदर उपमानों से सज्जित भावपूर्ण गीत.....
अलंकार आच्छा
प्रेम में नि:स्वार्थता दर्शाती कवि की कोमल, भावुक अभिव्यक्ति। बहुत सुंदर प्रेमगीत!
प्रेम की ऐसी सुंदर अभिव्यक्ति अंतर्मन को स्पर्श कर गयी! लाजवाब गीत !
मेरा जीवन मुक्त काव्य है
प्रेम की मर्यादित प्रस्तुति और अनुभूति कराती सुंदर रचना
विराट जी का प्यारा गीत।
सोनम
वाहहहह विराट जी का ये प्रेम गीत कितना सुंदर है प्रेम का निःस्वार्थ भाव,प्रेम के ढाई अक्षरों की बात कितने भावपूर्ण ढंग से व्यक्त की गई है ।सुंदर अभिव्यक्ति
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