Thursday, October 05, 2023

कौन पानी पर महावर रख गया

ये हवाएँ आ रही हैं दूर से
खिड़कियों को खोलकर स्वागत करो

चाँदनी चल दी कहीं चुपचाप ही
कौन पानी पर महावर रख गया
सामने ऊषा खड़ी मुस्का रही
कौन इसके हाथ पीले कर गया
पर्वतों के पार वाले पर्व का
छन्द कोई बोलकर स्वागत करो
ये हवाएँ आ रही हैं दूर से..........

झाड़ियों के शीश सोने से मढ़े
बादलों की कोर चाँदी की बनी
तीर पर उतरी नहाने के लिए
यह सुबह की धूप कितनी कुनकुनी
गीत गा गा कर लहर हर कह रही
रंग कोई घोलकर स्वागत करो
ये हवाएँ आ रही हैं दूर से..........

धूप के चावल निमंत्रण दे रहे
मौन रहकर देर इतनी मत करो
बादलों के पार कोई देवता
उठ रहा है शीश अपना नत करो
कश्तियाँ जो कूल से बाँधी गयीं
पाल सबके खोलकर स्वागत करो
ये हवाएँ आ रही हैं दूर से
खिड़कियों को खोलकर स्वागत करो
               
-सुरेश उपाध्याय

10 comments:

किरन सिंह said...

वाह सुरेश उपाध्याय जी ने उषा काल का सुंदर चित्रण किया प्रिय के स्वागत का अनोखा अंदाज़ ।

रेखा शर्मा said...

"पानी पर महावर " अहा ! कितनी सुंदर कल्पना . गीत की एक-एक पंक्ति भाव - विभोर कर जाती है.. " धूप के चावल निमंत्रण दे रहे
मौन रहकर देर इतनी मत करो " अति सुंदर और मनभावन गीत
- रेखा शर्मा

SANJAY said...

धूप के चावल ..... सुंदर अभिव्यक्ति, अद्भुत मानवीकरण

SANJAY said...

भोर का मनोरम चित्रण,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सुरेश जी। पूरी कविता में मानवीकरण की छटा निराली है। बहुत सुंदर।
-डॉ. संजय सराठे

Pragati said...

सुरेश उपाध्याय जी का यह गीत अप्रतिम है। आशा की स्याही से लिखा यह गीत मन में उल्लास भरता है और प्रभात काल का अद्भुत चित्रण करता है।
- प्रगति टिपणीस

Pragati said...

सुरेश उपाध्याय जी का यह गीत अप्रतिम है। आशा की स्याही से लिखा तथा अनन्य उपमाओं और रूपकों से सजा यह गीत मन में उल्लास भरता है, और प्रभात काल का अद्भुत चित्रण करता है।
- प्रगति टिपणीस

प्रीति गोविंदराज said...

बेहद मनोरम गीत उपाध्याय जी का, एक एक बिंब मन को मुग्ध करता है। धीरे-धीरे भोर का चित्र उभरता गया। अप्रतिम रचना साझा हेतु सादर धन्यवाद।

Anonymous said...

सुरेश उपाध्यायजी ने सूर्योदय का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है।
- माया बंसल ।

शर्मिला said...

बहुत बहुत सुंदर गीत है। एक से बढ़कर एक बिंब, रूपकों का प्रयोग, आँखों के सामने भोर का चित्र खींच रहा है।‌वाह वाह!
शर्मिला चौहान

याTRAvel,मन कबीर ; जग अबीर said...

पानी पर महावर रखना, भोर का यह खूबसूरत बिम्ब अपने आप में अनोखा है। धूप के चावल तरुओं से छनकर आती धूप के सौंदर्य का शब्द चित्र बना रहे। नवीन बिम्बों से अलंकृत एक सुन्दर नवगीत के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।
सादर

यमुना