सब कुछ मिला
मिली मुझको जब
चंदन वन से सौगुन शीतल
गंधित छाँह तुम्हारी
निरख सुनहरी बाँह लजा
जाती बौराई डाली
मेहंदी का भी ग़ुल उड़ जाता
क्या तलवों की लाली
बुलबुल पाटल पर लुट जाए
भूलें चाल मराली
सब कुछ मिला
मिली मुझको जब
खंजन-दृग से सौगुन चपल
निरंजन आँख तुम्हारी
संगमर्मरी देह सुघर सुंदर
सुकुमार सुचिक्कण
रत्नाकर है आँख तुम्हारी
मैं कुबेर, जग निर्धन
हरिन चकित लज्जित उदास
मुँह लटकाए नत चितवन
सब कुछ मिला,
मिली मुझको जब
मेघ धनुष से सौगुन बाँकी
मधु मुस्कान तुम्हारी
मेघपटल पर रूपांकित
होता नभ का सूनापन
एक कूक कोयल की लाती
अग-जग में परिवर्तन
एक टेर वंशी की सुन
बौरा जाता वृंदावन
सब कुछ मिला,
मिली मुझको जब
मलयानिल से सौगुन सुरभित
संदल साँझ तुम्हारी
हिमवंती चोटी पर्वत की
चरण चूमने आयी
हँसी सुनहरी मधुर भोर की
होंठों पर ललचायी
मुक्ति बा? में बर्ऋाबऋा कर
परितृप्ति माऋाने आयी
स्ब कुछ मिला? मिली न कभी जब
निस्पृह आकुल ममता की
कोई भी थाह तुम्हारीऋ्रफेन्तक्त
-नीलमेन्दु सागर
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