Monday, July 25, 2022

कौन मुस्काया

कौन मुस्काया
शरद के चाँद-सा
सिंधु जैसा मन हमारा हो गया

एक ही छवि 
तैरनी है झील में
रूप के मेले न कुछ कर पायेंगे
एक ही लय
गूँजती संसार में 
दूसरे सुर-ताल किसको भायेंगे
कौन लहराया
महकती याद-सा
फूल जैसा तन हमारा हो गया
कौन मुस्काया...

खिल गया आकाश
खुशबू ने कहा
दूर अब अवसाद का घेरा हुआ
जो कभी भी
पास तक आती न थी
उस समर्पित शाम ने जी भर छुआ
कौन गहराया
सलोनी रात-सा
रागमय जीवन हमारा हो गया
कौन मुस्काया...

पूर्व से आती
हवा फिर छू गई
फिर कमलमुख हो गई संवेदना
जल तंरगों में 
नहाकर चाँदनी
हो गई है इन्द्रधनु-सी चेतना
कौन शरमाया
सुनहरे गात-सा
धूप जैसा क्षण हमारा हो गया
कौन मुस्काया...

-विनोद श्रीवास्तव

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