कौन मुस्काया
शरद के चाँद-सा
सिंधु जैसा मन हमारा हो गया
एक ही छवि
तैरनी है झील में
रूप के मेले न कुछ कर पायेंगे
एक ही लय
गूँजती संसार में
दूसरे सुर-ताल किसको भायेंगे
कौन लहराया
महकती याद-सा
फूल जैसा तन हमारा हो गया
कौन मुस्काया...
खिल गया आकाश
खुशबू ने कहा
दूर अब अवसाद का घेरा हुआ
जो कभी भी
पास तक आती न थी
उस समर्पित शाम ने जी भर छुआ
कौन गहराया
सलोनी रात-सा
रागमय जीवन हमारा हो गया
कौन मुस्काया...
पूर्व से आती
हवा फिर छू गई
फिर कमलमुख हो गई संवेदना
जल तंरगों में
नहाकर चाँदनी
हो गई है इन्द्रधनु-सी चेतना
कौन शरमाया
सुनहरे गात-सा
धूप जैसा क्षण हमारा हो गया
कौन मुस्काया...
-विनोद श्रीवास्तव
No comments:
Post a Comment