हम दोनों के बीच अबोला
तुमको कैसा लगता है!
भले जुबाँ से कुछ ना बोलो
आँखें चुगली खाती हैं
चितवन से मुझको तकते ही
फौरन पकड़ी जाती हैं
गोरा मुँह लाली संयुत हो
चंदा जैसा लगता है
तुमको कैसा...
पायल-बिछुओं के घुँघरू जब
छनन-छनन बज जाते हैं
हम दोनों इक-दूजे के हैं
राज यही जतलाते हैं
सप्तपदी में नज़र पड़ी थी
बिल्कुल वैसा लगता है
तुमको कैसा...
हाथों के कंगन-चूड़ी भी
कब नीरव रह पाते हैं
खनक उठा करते हैं जब-तब
मन में प्रीत जगाते हैं
अल्हड़ प्रिया नैन में भर लूँ
उस पल ऐसा लगता है
तुमको कैसा...
-डा० उषा यादव
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