चाँदनी है ढूँढ़ती तुमको प्रिये !
तुम कहाँ हो ?
यह शरद की पूर्णिमा है,
बाँटती पीयूष आयी,
स्निग्धता की छींट करती
विश्व के कण-कण समायी,
पूर्णिमा भी टोहती तुमको प्रिये !
तुम कहाँ हो ?
प्रेम के आलोक में जग
रूप का दर्पण निहारे,
चंद्रमा है दीप्त देखो,
दीप्त हैं देखो, सितारे,
शुभ्रता भी खोजती तुमको प्रिये !
तुम कहाँ हो ?
जग भले देखे न देखे,
मन यती रहता अवश है,
हृद प्रतिष्ठित हो गया जो,
मन उसी के प्रेमवश है,
बावली सुधि टेरती तुमको प्रिये !
तुम कहाँ हो ?
-राजेन्द्र वर्मा
3 comments:
अति सुंदर। आदरणीय वर्मा जी को बधाई
वाह बहुत सुंदर भाव चाँदनी है ढूँढती तुमको प्रिये ! तुम कहाँ हो ? प्रिय को ढूँढना बहुत ही सुंदर गीत ।
तुम कहाँ हो…बहुत सुंदर गीत । रेणु चन्द्रा
Post a Comment