जब तुम आये लगा कि जैसे
अभी-अभी चंदा निकला है
या फ़िर मेरे सूने आँगन
कोई लाल गुलाब खिला है।
लगा कि कोई परी इंद्र की
धीरे-धीरे पास आ रही
जानी-पहचानी सी खुश्बू
पगले मन को रास आ रही
लगा कि जैसे मेरा कोई
विगत जनम का कर्म फला है।
चूडी-कंगन की टकराहट
देती जन्म आठवें स्वर को
पायल की रुनझुन कर देती
झंकृत इस सूने अंबर को
लगा कि जैसे प्यासे मृग को
इक लहराता ताल मिला है ।
कितना चुप है झील किनारा
लहर-लहर से टकराती है
ऐसे में इक याद तुम्हारी
अलख सुबह तक बतियाती है
पौ फटने पर कहकर जाती
देखो अब सूरज निकला है ।
झींगुर कीट पतंगे सारे
जाने कैसा राग सुनाते
बिना सुने ओ थके मुसाफ़िर
तू गठरी ले यूँ मत जा रे
मंज़िल पहुँच लगेगा तुझको
तुझे नियति ने बहुत छला है ।
-बी.एल. गौड़
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