Saturday, July 23, 2022

जब तुम आये

जब तुम आये लगा कि जैसे 
अभी-अभी चंदा निकला है
या फ़िर मेरे सूने आँगन 
कोई लाल गुलाब  खिला है।

लगा कि कोई परी इंद्र की
धीरे-धीरे पास आ रही
जानी-पहचानी सी खुश्बू
पगले मन को रास आ रही
लगा कि जैसे मेरा कोई 
विगत जनम का कर्म फला है।

चूडी-कंगन की टकराहट 
देती जन्म आठवें स्वर को 
पायल की रुनझुन कर देती
झंकृत इस सूने अंबर को
लगा कि जैसे प्यासे मृग को
इक लहराता ताल मिला है ।

कितना चुप है झील किनारा
लहर-लहर से टकराती है
ऐसे में इक याद तुम्हारी 
अलख सुबह तक बतियाती है
पौ फटने पर कहकर जाती
देखो अब सूरज निकला है ।

झींगुर कीट पतंगे सारे
जाने कैसा राग सुनाते 
बिना सुने ओ थके मुसाफ़िर 
तू गठरी ले यूँ मत जा रे
मंज़िल पहुँच लगेगा तुझको 
तुझे नियति ने बहुत छला है ।

-बी.एल. गौड़

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