Saturday, July 23, 2022

तुम्हारी यादें

 मेरे पास तुम्हारी यादें
और सुहाना-सा मौसम है

स्मृतियों में खोई-सोई
सारी तिथियाँ जग जाती हैं
छूने की कोशिश करता हूँ
कैलेण्डर में छुप जाती हैं
खिड़की पर चंदा मुस्काता
कानों में घुलती छम-छम है
मेरे पास तुम्हारी यादें...

मुझको थोड़ा ज्वर, सिरहाने
बैठी-बैठी घबराती हैं
सिगरेटों को कोसा करतीं
बच्चों जैसा समझाती हैं
कुहरा जाती हैं तस्वीरें
तकिया कुछ हो जाता नम है
मेरे पास तुम्हारी यादें...

मैं शामों-रातों से लड़ता
तुम हर इक पल से लड़ती हो
खण्डवा से कलकत्ता, कितना
ऊँचा-लम्बा पुल गढ़ती हो
अगले ही पल आतंकी कल
चुपके से रख जाता बम है
मेरे पास तुम्हारी यादें...

चिठ्ठी में मोती आते हैं
जब-तब पढ़ता चूमे लेता
काले सागर में हूँ अपनी
नैया जल्दी-जल्दी खेता
पहरे की सीटी बज जाती
दुख थोड़ा हो जाता कम है
मेरे पास तुम्हारी यादें...

आँखें लगती, कोई सपना
मेरी आँखें खोले देता
अँधियारे बीहड़ में आगत
सुख के दिन के अण्डे सेता
डूबी-डूबी साँसों में फिर
आ जाता थोड़ा-सा दम है
पास तुम्हारी यादें...

-शशिकांत गीते

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