Wednesday, July 20, 2022

ये प्रेम तन के पार है

बस भाव का संसार है 
ये प्रेम तन के पार है 

देह की हर कोशिका में 
हो गया है घर उसी का 
जिस्म को भी आ गया है 
रूह का पूरा सलीका 
अब चुप्पियों का नृत्य है 
अब मौन की झनकार है

वो सुबह की लालिमा है 
साँझ की सुर्ख़ी वही है 
वो हवा में खुशबुओं सा
किस दिशा में वो नही है 
वो ओस की हर बूंद में 
वो सृष्टि का विस्तार है

घुल गया है रक्त में वो 
धमनियों में बह रहा है 
दूरियों में बस विरह है 
ये भरम अब ढह रहा है 
रहते हुए इस लोक में
ये पारलौकिक प्यार है

-संध्या सिंह

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