गीत लेता रहा करवटें रात भर
और भीतर सफ़र नित्य ज़ारी रहा
बिंब बनते रहे, छवि उभरती रही
ताल में एक मछली सँवरती रही
बात करती रहीं आहटें रात भर
प्रेम यूँ हर पहर नित्य ज़ारी रहा
गीत लेता रहा करवटें...
याद रह-रह किसी की सताती रही
एक खिड़की मुझे फ़िर बुलाती रही
हाय! उँगली से उलझीं लटें रात भर
उस छुअन का असर नित्य ज़ारी रहा
गीत लेता रहा करवटें...
एक कोयल कहीं गुनगुनाती रही
प्यार के गीत सबको सुनाती रही
क्रम बदलती रहीं सलवटें रात भर
याद का इक कहर नित्य ज़ारी रहा
गीत लेता रहा करवटें...
क्यों उसे पा लिया, क्यों उसे खो दिया
सोचकर बस यही, आज़ फ़िर रो दिया
कम हुईं जब न घबराहटें रात भर
फ़िर ख़ुदा का हुनर नित्य ज़ारी रहा
गीत लेता रहा करवटें...
-कुमार ललित
आगरा
मोबा-9358057729
kavilalit@gmail.com
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