Saturday, July 23, 2022

दहका दहका मन का पलाश

दहका-दहका मन का पलाश
महका-महका सा बाहुपाश
कल्पना कपोती उड़कर अंबर छू आई,
फिर कोई आदिम प्यास साँस में लहराई।

पगडंडी पहुँची छाँव तलक
मन गया पिया के गाँव तलक
दूधिया चाँदनी भिगो गई
गोरी को सिर से पाँव तलक
हल्दी मेंहदी बिछुआ पायल और शहनाई
फिर कोई आदिम प्यास...

द्वापर के वंशीवट जैसा
यमुना के पावन तट जैसा
कामना कृष्ण की मुरली-सी
संयम राधा के पट जैसा
मन के मधुबन में महारास की परछाईं
फिर कोई आदिम प्यास ...

शबनमी तरलता अंग-अंग
धड़कन में बजते जल-तरंग
मीठा विष लेकर लिपटे हैं
चाहों के लहराते भुजंग
सागर तल से पर्वत शिखरों की ऊँचाई
फिर कोई आदिम प्यास साँस में लहराई।

-सरिता शर्मा

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