जब से लाल गुलाल
गाल पर तुमने मल दी है
लगने लगी कामनाओं के
कर में हल्दी है
अब तक तो नयनों का उपवन
सूना-सूना था,
तुम्हें देखकर भावों की
सरसों पियराई है
पहली बार प्राण-कोकिल ने
नीरव तोड़ा है,
पहली बार हुई गुंजित
मन की अमराई है
बौरायेगी डाल
परागण जाने कब होगा
सपनों की अमिया को तो
पकने की जल्दी है
जब से लाल गुलाल ...
अब तक तो यह मन बेचारा
कोरा कागज़ था,
तुमने इस पर लिख डाला
संदेसा फागुन का
बाट जोहने लगी हृदय की
भोली अभिलाषा,
अपने किसी अपरिचित से
पहचाने पाहुन का
बहुत पहाड़े पढ़े आज तक
संयम के लेकिन,
पवन प्रणय का मंत्र फूँक
कानों में चल दी है
जब से लाल गुलाल ...
अब तक तो मन रहा भटकता
जग के मेलों में,
झूल रहा था जीवन
आशाओं के झूलों में
किसे पता था दृग से मुखरित
होंगे मौन अधर,
हो जायेंगे व्यर्थ सभी
भाषाओं के अक्षर
खुशियों के नूपुर, जब तुमने
पाँवों में बाँधे,
तभी नियति ने मुझे उमंगों की
मादल दी है
जब से लाल गुलाल ...
-डाॅ. राम वल्लभ आचार्य
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