प्रेम तुम्हारा
अनगढ़ मूरत के-
जैसा श्यामल
किस विधि बाँचे
समझ न पाता
मन मेरा पागल
प्रेम तुम्हारा...
बिन बोले बिन बतियाए
पढ़ लेती हो मन को
महका देती हो खुशियों से
भी घर-आँगन को
प्रेम तुम्हारा
हर प्रश्नावलि को
कर लेता हल
प्रेम तुम्हारा...
आस लगाए रहता तुमसे
घर का हर कोना
जकड़ रखा मुट्ठी में घर को
कर जादू-टोना
प्रेम तुम्हारा
सबकी खातिर
इक जैसा निश्छल
प्रेम तुम्हारा...
पूजा की थाली के जैसा
सौंधी मिट्टी-सा
ढाई आखर वाली
अनबूझी इक चिट्ठी- सा
प्रेम तुम्हारा
पावन नदियों में भी
गंगाजल
प्रेम तुम्हारा...
-रवि खण्डेलवाल
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