Thursday, July 14, 2022

प्रेम तुम्हारा

प्रेम तुम्हारा 
अनगढ़ मूरत के- 
जैसा श्यामल 
किस विधि बाँचे
समझ न पाता 
मन मेरा पागल
प्रेम तुम्हारा... 

बिन बोले बिन बतियाए
पढ़ लेती हो मन को
महका देती हो खुशियों से
भी घर-आँगन को
प्रेम तुम्हारा 
हर प्रश्नावलि को 
कर लेता हल
प्रेम तुम्हारा... 

आस लगाए रहता तुमसे
घर का हर कोना
जकड़ रखा मुट्ठी में घर को
कर जादू-टोना
प्रेम तुम्हारा 
सबकी खातिर 
इक जैसा निश्छल
प्रेम तुम्हारा... 

पूजा की थाली के जैसा
सौंधी मिट्टी-सा
ढाई आखर वाली 
अनबूझी इक चिट्ठी- सा
प्रेम तुम्हारा 
पावन नदियों में भी 
गंगाजल
प्रेम तुम्हारा... 

-रवि खण्डेलवाल

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