Thursday, July 14, 2022

प्रीति का मौसम

चाँदनी फूली हुई है, 
है हवा मद्धम
आज बौराने लगा है 
प्रीति का मौसम

छू लिया तो 
खिल गए हैं 
फूल अधरों के
खुल गए हैं 
पृष्ठ सारे 
आज नजरों के
अब कपोलों पर 
सजी है 
लाज की लाली
कम पड़े 
उपमान सारे 
आज नखरों के
लौ नयन की 
हर रही है 
आज सारे तम
आज बौराने लगा है... 

दो मिले 
मिल कर हुए हैं 
एक जीवन में
हैं इरादे 
प्रेम के भी 
नेक जीवन में
इस मिलन में 
शर्त कोई 
थी नहीं साथी
हो गया है 
प्रेम का 
अतिरेक जीवन में
पड़ गए 
अनुभूति के 
अंदाज सारे कम
आज बौराने लगा है... 

शब्द अपने 
अर्थ को 
जीने लगे हैं अब
घूँट अमरित के 
अधर 
पीने लगे हैं अब
अब बदलने 
लग गया है 
चक्र ऋतुओं का
लाज के 
सब आवरण 
झीने लगे हैं अब
तुम नहीं 
मैं भी नहीं 
अब हो गए हैं हम
आज बौराने लगा है 
प्रीति का मौसम

-रेखा लोढ़ा 'स्मित'

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