Wednesday, July 13, 2022

तुम मिले अचानक शाम ढले

तुम दिए दिखाई अकस्मात
तो आँखों को मल-मल देखा
तुम हो या सुखद कल्पना है, 
या भरमाये मन का लेखा 
मन माना जब सम्मुख आकर,
तुम अनायास ही मिले गले 
तुम मिले अचानक शाम ढले.

मिलते ही तुमसे जाने क्यों,
तन हुआ अचानक छुई मुई 
सालों की दूरी पल भर में,
नापी, पर पीड़ा मुखर हुई 
संवाद मौन, अवरुद्ध कंठ 
आँसू ही आँसू बह निकले 
तुम मिले अचानक शाम ढले.

कितनी ही बातें कहनी थीं,
सुननी थीं कितनी ही बातें 
कैसे-कैसे मोहरा बनकर,
झेलीं जीवन की शह-मातें 
पर तालू से चिपकी जुबान
फिर शब्द रह गए कंठ तले 
तुम मिले अचानक शाम ढले.

वो सुबह-शाम की मुलाक़ात
खिल-खिलकर हँसना बिना बात
खुशियों की वो भीनी सुगंध
पुलकित-प्रमुदित थे नेह-बंध 
आगत के स्वर्णिम स्वप्न सजा,
जब साथ प्रेम की राह चले 
तुम मिले अचानक शाम ढले.

इतने वर्षों के बाद मिले,
फिर मिलन दुबारा हो कि न हो 
मैं कुछ भी नहीं तुम्हारे बिन 
तो तुम भी क्या मेरे बिन हो
विश्वासों की रक्षा करना, 
चाहे पूरा ब्रह्माण्ड छले 
तुम मिले अचानक शाम ढले.

-डाॅ० सुशीला शील       
        

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