Thursday, July 14, 2022

पहले-पहले प्यार में

आँखों में फागुन की मस्ती
पलकों पर वासन्ती हलचल
मतवाला-मन भीग रहा है
बूँदों के त्योहार में,
शायद ऐसा ही होता है
पहले-पहले प्यार में।

पैरों की पायल छनकी कंगन खनका
हर आहट पर चौंक-चौंक जाना मन का
साँसों का देहरी छू-छूकर आ जाना
दर्पण का खुद दर्पण से ही शरमाना
और धड़कना हर धड़कन का
सपनों के संसार में
शायद ऐसा ही होता है... 

भंग चढ़ाकर बौराया बादल डोले
नदिया में दो पाँव हिले हौले-हौले
पहली-पहली बार कोई नन्ही चिड़िया
अम्बर में उड़ने को अपने पर तौले
हिचकोले खाती है नैया 
मस्ती से मझधार में
शायद ऐसा ही होता है... 

जिन पैरों में उछला करता था बचपन
कैसी बात हुई कि बदल गया दर्पण
होता है उन्मुक्त अनोखा ये बन्धन
रोम-रोम पूजा साँसें चन्दन-चन्दन
बिन माँगे सब कुछ मिल जाता
आँखों के व्यापार में
शायद ऐसा ही होता है... 

-डॉ० कीर्ति काले

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