जगदीश पंकज श्रेष्ठ गीत/ नवगीतकार हैं... आज उनके इस नवगीत को पढ़ें ... प्रतिक्रिया भी लिखें...
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सितारों में कहाँ
तुम खोजते हो
तुम्हारे ही नयन में तो बसा हूँ
किसी की चाहतों के
रंग लेकर
क्षितिज पर मल दिये हों
जब गगन ने
अनोखे दृश्य लेकर
धूप से भी
सजाये हैं कहीं पर
शान्त मन ने
तुम्हारी कोर पर
चिपका हुआ हूँ
तुम्हारी दृष्टि में ही तो कसा हूँ !
तुम्हारे ही नयन में...
तुम्हारे रोम-कूपों से
उछलकर
अनोखी गन्ध कैसी
बह रही है
मिला मकरंद भी मादक
जिसे हो
उसी की साँस सब कुछ
कह रही है
सुखद आलिंगनों की
कल्पना में
मचलकर मैं स्वयं ही तो फँसा हूँ !
तुम्हारे ही नयन में...
-जगदीश पंकज
1 comment:
बहुत सुंदर नवगीत नयन में तुम्हारे ही बसा हूँ ।
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