शीतल पवन, गंधित भुवन
आनन्द का वातावरण
सब कुछ यहाँ पर तुम नहीं
है चाहता बस मन तुम्हें
शतदल खिले, भौंरे जगे
मकरन्द फूलों से भरे
हर फूल पर तितली झुकी
बौछार चुम्बन की करे
सब ओर मादक स्फुरण
सब कुछ यहाँ पर तुम नहीं
है चाहता ...
संझा हुई सपने जगे
बाती जगी, दीपक जला
टूटे बदन, घेरे मदन
है चक्र तीरथ का चला
कितने गिनाऊँ उद्धरण
सब कुछ यहाँ पर तुम नहीं
है चाहता...
नील-जल की झील में
राका नहाती निर्वसन
सब देख कर मदहोश हैं
उन्मत चाँदी का वदन
रस-रंग का है निर्झरण
सब कुछ यहाँ पर तुम नहीं
है चाहता ...
-कृष्ण शलभ
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