कृष्ण भारतीय वरिष्ठ गीतकार हैं, उनके गीतों में एक विशेष तरह की सादगी है... उनके इस गीत को पढ़ें और प्रतिक्रिया भी लिखें...
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अनकही आग में ही दहे जा रहे !
तुम मुझे, मैं तुम्हें
मुग्ध हूँ देखकर
हम बहुत कुछ अबोले कहे जा रहे
प्यार की है न भाषा, न रंगत कोई
सब मगर मुस्कराते सबेरे हुए
भाव, सपने रचे, आँख की कोर क्या-
इद्रधनुषी छटा के चितेरे हुए
अनकहे मौन में
हम सुलगते रहे-
अनकही आग में ही दहे जा रहे
गीत की आड़ में जो लिखीं चिट्ठियाँ
प्रेम का तुम निमंत्रण वो पढ़ ना सके
ये हृदय की अँगूठी सिसकती रही
हम नगीने-सी सूरत ये जड़ ना सके
स्वप्न के कैनवासी
बिछे पृष्ठ पर
हम ख्यालों की मूरत गढ़े जा रहे
अनकही आग में ...
लाज की ओढ़नी में कोई अप्सरा
शर्म की बदलियों में सिमटती रही
चाँदनी के लिए हम खड़े रह गये
इक अमावस में आभा वो घटती रही
बाँह में हम तुम्हें,
सोच में भींचते
गीत अपनी ही धुन में पढ़े जा रहे
अनकही आग में...
-कृष्ण भारतीय
6 comments:
गीत अपनी ही धुन में गढ़े जा रहे वाह वाह बहुत ही सुंदर गीत प्रेम की पराकाष्ठा है जो प्रेयसी से सामने नरहन पर भी निश्छल प्रेम…….
गीत की आड़ में जो लिखी चिट्ठियां
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
शानदार गीत
अंतिम पंक्ति है 'गीत अपनी ही धुन में पढ़े जा रहे'।
गीतों को गाया जाता है। पढ़ी जाती है ग़ज़ल।
फिर कवि ने ऐसा क्यों कहा?
-मानवेन्द्र सिंह
श्री दिनकर जी की कविता -'गीत- अगीत 'में बताया गया है कि जो हमें सुनाई दे वह -गीत और जो सुंदर भाव हमारे दिल में उमड़ कर रह जाएँ वे -अगीत. प्रश्न पूछा गया है गीत अगीत कौन सुंदर है?
श्री कृष्ण भारतीय जी के इस 'अगीत ' से सुंदर भला और कौन सा गीत हो सकता है? प्रेम में आकंठ डूबे मौन हृदय के उद्गारों की भावुक अभिव्यक्ति !
- रेखा शर्मा
भावों की अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति।
बहुत सुंदर गीत
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